Sunday 2 February 2014

अप्रत्यक्ष के लिए

प्रत्यक्ष को अनदेखा कर
अप्रत्यक्ष को संवारने चले हैं
इस जन्म का पता नहीं
अगला जन्म सुधारने चले हैं.......
चल पड़ते हैं असंख्य
लगाने को डुबकियाँ
आस्था के संगम में
मन्नतों से मन को
बहलाने चले हैं.........
रहे न कोई चाहत अधूरी
हो जाएँ हर ख्वाहिशें पूरी
डूबो कर बस तन अपना
जन्म- जन्मान्तर तक
नसीब अपना सुधारने चले हैं ..........
होता है यहीं
कर्मों का लेखा-जोखा
पर, हम शायद
धो पुराने पाप
नए के लिए
तैयार हो चले हैं ..........

4 comments:

  1. katu satya hai hamare dohrepan ki zindagi ka .....

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  2. Tooooooo Goooooood

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  3. कहते हैं कि आदमी न कुछ लेकर आता है और न ही साथ कुछ जाता है. जो है वह इसी जीवन में. कविता में अक्सर ही हम प्रत्यक्ष की उपेक्षा करते हैं नैतिक स्टार पर भी भविष्य के लिए वर्तमान को समर्पित कर देते हैं पर जिसे अंग्रेजी में here and now कहते हैं वह इस कविता में बहुत सरल लेकिन दमदार तरीके से सामने आता है.

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